रमजानुल मुबारक की फजीलत ओर अहमियत

माह-ए-रमजान की आमद
रमजानुल मुबारक की फजीलत ओर अहमियत


ये बरकतों ओर अजमतों वाला महीना हैं, इस मुकद्दस व मुबारक माह की अजमत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुरआन करीम जैसी अजीम किताब का नुजूल (उतरना, अवतरित होना) इसी मुबारक महीने में हुआ हैं, ओर बहुत सी अहादीस में इसकी अजमतों को बयान किया गया हैं। चुनांचे हदीस पाक में इरशाद है कि ‘‘रमजान शहुवु उल्लाह’’ यानी रमजान अल्लाह का महीना हैं। रमजानुल मुबारक की फजीलत ओर इसके तकाजे यह है कि अल्लाह तआला ने इस माह मुबारक को अपनी तरफ मंसूब फरमाया है।


अल्लाह तबारक व तआला ने इस माह को तीन हिस्सों यानी अशरों में तक्सीम (बांटा) है। पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत व तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है। रमजानुल मुबारक की अहमियत के बारे में अल्लाह तबारक व तआला ने हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लललाहु अलेही वसल्लम से इरशाद फरमाया कि अगर मुझे आप सल्लललाहु अलेही वसल्लम की उम्मत को जहन्नम में ही जलाना होता तो रमजान का महीना कभी न बनाता।


जब रमजान का चांद नजर आता तो आप सल्लललाहु अलेही वसल्लम फरमाते थे, कि यह चांद खैर व बरकत का है। मैं इस जात पर इमान रखता हूं, जिसने तुझे पैदा फरमाया। एक मर्तबा हजरत जिब्राइल (अ.) ने आप सल्लललाहु अलेही वसल्लम को सलाम किया और दुआ की हलाक हो जाए वह शक्स जिसको रमजान का महीना मिले और वह अपनी बख्शीश ना करवा सके, जिस पर आप सल्लललाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया आमीन। अब हम अंदाजा लगाएं कि हजरत जिब्राइल (अ.) की यह दुआ और फिर जनाब मुस्तफा सल्लललाहु अलेही वसल्लम का आमीन कहना इसकी अस्मत को कितना आला बनाता है।


जनाब नबी-ए- करीम सल्लललाहु अलेही वसल्लम का इरशाद है कि रमजान की जब पहली रात होती है, तो शयातीन को बंद कर दिया जाता है। और सर्कश जिनो (जिन्नात) को भी कैद कर दिया जाता है। और दोजख के दरवाजे भी बंद कर दिये जाते हैं। दोजख का कोई भी दरवाजा नहीं खोला जाता और इसी तरह जन्नत के तमाम दरवाजों को खोल दिया जाता है और एक पुकारने वाला पुकारता है, कि ऐे नेकी के तालिब आगे बढ़, अब नेकी का वक्त है। और ऐ गुनाहगार अब गुनाहों से रूक जा और तोबा का वक्त तो तोबा कर और अपने अल्लाह को राजी कर। अल्लाह बहुत ज्यादा माफ करने वाला है।


रोजा वह अजीम फरीजा है जिसको रब्ब-ए- कायनात में अपनी तरफ मनसू फरमाया है, और कयामत के रब्ब-ए-जुल जलाल इसका बदला और अजर बगैर किसी वास्ते के बजाते खुद रोजेदार को इनायत फरमाएंगे। रब्बे करीब ने अपने बंदों के लिए इबादात के जितने भी तरीके बताए हैं उनमें कोई न कोई हिकमत जरूर पोशिदाह है। नमाज खुदा से नजदीकी का जरिया है, इसने बंदा अपने माअबूद से गुफ्तगू करता है। रोजा भी खुदा तआला से लो लगाने का एक अहम जरिया है।
हजरत जाबिर बिन अब्दुल्ला से रिवायत है कि हुजूर सल्लललाहु अलेही वसल्लम का इरशाद है कि मेरी उम्मत को माहे रमजान में पांच चीजें ऐसी अता की गई है, जो मुझसे पहले किसी नबी को नहीं मिली। नंबर एक, पहले ये की जब रमजानुल मुबारक की पहली रात होती है, तो अल्लाह तआला उनकी तरफ रहमत की नजर फरमाता है और जिसकी तरफ अल्लाह तआला नजरें रहमत फरमाएं उसे कभी भी अजाब न देगा।

दूसरी ये की शाम के वक्त उनके मुंह की बू ( जो भूक की वजह से होती है) अल्लाह तआला के नजदीक मुश्क की खुशबू से भी ज्यादा बेहतर है। तीन फरिश्ते हर रात ओर दिन रोजेदारों लिए मगफिरत की दुआएं करते रहते हैं। वहीं अल्लाह तआला जन्नत को हुकुम देते हे कि मैरे नेक बंदों के लिये मुजय्यन हो जा, अनकरीब वह दुनिया की मशक्कत से मेरे पास आकर सुकून वो राहत पाएंगे। पांचवें जब रमजानुल मुबारक की आखिरी रात आती है, तो अल्लातआला तमाम रोजेदारों की मगफिरत फरमा देता है।


हजरत सहल बिन सअद ( र.) से रिवायत है कि जन्नत का एक दरवाजा जिसका नाम रय्यान है, कयामत के दिन इस दरवाजे से रोजेदार गुजरेंगे। उनके अलावा इस दरवाजे से दूसरा नहीं गुजरेगा। रमजान के इस मुबारक माह की इन तमाम फजीलतों को देखते हुए मुसलमानों को इस महीने में इबादतों का खास अहतमाम करना चाहिए। और कोई लम्हा जाए ( बर्बाद) और बेकार जाने नहीं देना चाहिए और इसलिए भी कि इस मुबारक माह में नफलों का सवाब फर्जों के बराबर और फर्जों का सत्तर फर्जों के बराबर कर दिया जाता हैं, इस माह के आखरी अशरे की ताक रातों में शब-ए-कदर इनायत की गई है, जो हजार रातों से भी अफजल है।
मौलाना अब्दुल वाजिद मजाहिरी
मुर्दरिस (उस्ताद) मदरसा दार-ए-अरकम
आजाद कालोनी, देहरादून।

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