कांग्रेस को टूट का खतरा

  • कांग्रेस को टूट का खतरा
  • बेहद कड़े मुकाबले में फंसी है कांग्रेस
  • हरीश रावत व प्रीतम सिंह खेमा हर हाल में सीएम बनने के लिये किसी भी हद तक जाने को आतुर
  • प्रदेश प्रभारी व सह प्रभारियों को मतगणना से दो दिन पहले ही देहरादून पहुंच डेरा डालने का आदेश


मौहम्मद शाहनजर


देहरादून।
उत्तराखण्ड कांग्रेस को विधनसभा चुनाव 2022 की मतगणना से पहले ही पार्टी में टूट का खतरा नजर आने लगा है। जिसके चलते पार्टी हाईकमान ने अलग-अलग रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है। पार्टी ने एक ओर जहां प्रदेश प्रभारी व सह प्रभारियों को मतगणना से दो दिन पहले ही देहरादून पहुंच कर डेरा डालने का आदेश दे दिया है, वहीं, जिताऊ प्रत्याशियों को कांग्रेस शासित राज्यों में भेजे जाने पर विचार किया जा रहा है। कांग्रेस 2007 व 2012 में बहुमत से पीछे रह गई थी, 2012 में तो किसी तरह कांग्रेस पीडीएफ के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल हो गई थी, मगर 2007 में सहयोगियों को मुठ्ठी में करने के बावजूद कांग्रेस सरकार नही बना सकी थी, तब हाईकमान ने विपक्ष में बैठने का फैसला लिया था। 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत पंडित नारायण दत तिवारी के चुनाव मैदान से हटने के चलते कांग्रेस बहुमत के आंकडे़ से पिछड़ गई थी, तब हरीश रावत ने यूकेडी ओर बसपा के विधायकों के साथ सरकार बनाने की दावेदारी की थी, हरीश रावत इस संबंध में प्रेसवार्ता करने वाले थे, मगर तब कांग्रेस हाईकमान ने विपक्ष में बैठने का फरमान सुना दिया था। वहीं, 2016 में हरीश रावत सरकार को बगावत का सामना करना पड़ा था, कांग्रेस इन सब हालातों को मद्देनजर रखते हुए कई रणनीतियों पर काम कर रही है। हाईकमान की ओर से प्रभारी व सहप्रभारियों को मतगणना से पहले दून में डेरा डालने के आदेश दिए गए है। कहा जा रहा है कि इस बार भी 2012 जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में पाला बदलने वाले विधायकों पर खास नजर रखने की व्यवस्था की जा रही है।

2012 में कांग्रेस को 32 व भाजपा को 31 सीटें मिली थी। कांग्रेस ने पीडीएफ के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। जो 2016 में हुई बगावत के बाद गिर गई थी। उत्तराखण्ड में 14 फरवरी को पांचवी विधनसभा गठन के लिए मतदान हो चुका है। नई सरकार के भाग्य का पिटारा 10 मार्च को खुलेगा, मगर उत्तराखण्ड में विधनसभा चुनाव का नतीजा आने से पहले भाजपा और कांग्रेसी दिग्गज अपनी-अपनी जीत के दावे तो कर रहे हैं, मगर आशवस्त कोई नहीं है। भाजपा में भीतरघात की आवाजे हर रोज सुनाई दे रही है, तो कांग्रेस को अपने ही खेमे को एकजुट रखने के लिए कांग्रेस शासित प्रदेशों में भेजने पर विचार करने को मजबूर होना पड़ रहा है। उत्तराखण्ड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ऐसी किसी भी संभावना से साफ इनकार कर रहे हैं, मगर गोदियाल ये भी कह रहे हैं कि भाजपा येन केन प्रकरण सत्ता प्राप्त करना चाहती है। इसलिए किसी भी स्थिति से निमटने के लिए पहले से तैयार रहने में कोई बुराई नहीं है। सियासत में कब क्या हो जाए और कौन किस दल में आस्था प्रक्रट कर दें ये भी कहना मुश्किल है।

उत्तराखण्ड कांग्रेस पूर्व के दर्द को अभी तक भूली नहीं है। इसलिए छांछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है। कांग्रेस ने जिताऊ प्रत्याशियों को कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान व छत्तीसगढ़ भेजने की तैयारी कर ली है। कांग्रेसी कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भाजपा के लिए सत्ता के आगे कोई नैतिकता नहीं है। दूसरी बड़ी वजह कांग्रेसियों की आपसी गुटबाजी है। हरीश रावत व प्रीतम सिंह खेमा हर हाल में सीएम बनने के लिये किसी भी हद तक जाने को आतुर दिखाई दे रहें है, कांग्रेस हाईकमान इस लिहाज से भी एहतियात बरत रहा है। कांग्रेसी दिग्गज भले ही 40 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रहे हों, लेकिन धरातल से जो फीडबैक प्राप्त हो रहा है, उसमें वह अधिकांश सीटों पर बेहद कड़े मुकाबले में फंसी है। सियासी जानकारों का मानना है कि हालात 2012 वाले हो जाएं तो कोई अचरज वाली बात नहीं होगी। 10 मार्च को ईवीएम के पिटारे से नतीजों की कुछ ऐसी ही तस्वीर बनी तो इस बार भाजपा सरकार बनाने का दांव चलने से बिल्कुल नहीं चूकेगी। इन हालातों में बसपा ओर निदर्लीय विधायकों की चांदी होना तय माना जा रहा है।

भाजपा ने पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक को घेरा बंदी करने में लगा दिया है। भाजपा हर स्थिति में सरकार बनाने के लिये किसी भी हद तक जाने से गुरेज नही करती, यह बात कांग्रेस आलाकमान को भी मालूम है। कांग्रेसी हलकों में चर्चा गर्म है कि पार्टी आलाकमान चुनाव परिणाम से पहले और उसके बाद की स्थितियों के आधार पर अपनी रणनीति बना रहा है। पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में कांग्रेस सत्ता प्राप्ति के लिए पूरी ताकत लगा रही है। जोड़ तोड़ और तोड़-फोड़ की राजनीति से बचाव के लिए कांग्रेस ऐसा कवच तैयार करने की सोच रही है कि जिसे भेदना भाजपा के लिए दुष्कर हो जाए। इसमें प्रत्याशियों और जीत के बाद विधायकों को अज्ञात ठिकानों पर भेजने का विकल्प भी शामिल है।

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