रमजानुल मुबारक और हमारी जिम्मेदारियां

रमजानुल मुबारक और हमारी जिम्मेदारियां
मुफ्ति वसी उल्लाह कासमी
रमजान का महीना जिसमें क़ुरआने करीम नाजिल किया गया, जो इंसानों के लिए हिदायत है, इसमें रास्ता बताने की खुली-खुली निशानियां और फैसला मौजूद है। रमजान रमज से मुश्तक है जिसके मायना किसी चीज को बारीक करना यानी दो हमवार पत्थरों के दरमियान रख कर कूटना और सोम का मतलब रूक जाना है। नफस कशी करना, लिहाजा सोम-ए-रमजान का मतलब हुआ की रोजा रख कर खाने-पीने ओर जिमा (पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने) से अपने नफस को रोक कर नफसानी ख्वाहिश और अल्लाह के हुक्म के दरमियान नफस को कूटना और बारीक करना है।
रमजान का पूरा महीना निहायत मुबारक व मसऊद औकात में से है, जिनमें रब्बे कायनात की शाने करीमी का खुसूसी जहूर होता है और अपने इताअत (अनुयायी) शआर बंदों की तरफ से इसकी रहमते तमाम मुतवज्जह होती हैं। रमजान के इस्तकबाल का सिलसिला माहे शाहबान से ही शुरू हो जाता है।
चुनांचे अहादीस में है कि रसूले अकरम मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम माहे रजब से ही रमजान का अहतमाम फरमाने लगते थे। हजरत अनस रजि अल्लाह फरमाते हैं कि जब माहे रजब आता तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो वाले वसल्लम दुआ करते हैं की ऐ खुदा हमारे लिए रजब व शाबान को बा-बरकत बना और हमें माहे रमजान तक पहुंचा।
(बहकई व मिशकात)
रमजान के मुकद्दस माह की आमद तमाम मुसलमानों के लिए अल्लाह का एक इनाम और उसकी पैहम इनायतों का एक तसुलसल है। यह महीना अल्लाह के तकररूब(नजदीकी) और उसकी रजा हासिल करने और मुस्तकिल तौर पर अपनी जिंदगी में इंकलाब बरपा करने का एक बहाना है। इस मौके पर थोड़ी सी मेहनत और अल्लाह से ताल्लुक किसी के भी मुस्तकबिल की जिंदगी को संवार सकता है और जिंदगी कि इन तमाम खुशियों को मुहैया करा सकता है जिनकी इंसान मुद्दतों तमन्ना करता है। इस माह में इबादत का अजरो-सवाब बढ़ा दिया जाता है और इबादत की तौफीक देकर अल्लाह तआला की बेहिसाब अता व बख्शिश मुतवज्जह रहती है।
रमजान वह मुबारक महीना है जिसमें मशहूर आसमानी किताबें (तौरेत, जबूर और इन्जील) नाजिल हुई और सबसे आखिरी आसमानी और अल्लाह की सबसे प्यारी किताब क़ुरआने करीम इस महीने की एक रात जिसे शब-ए-कद्र कहा जाता है, में पूरी कुरआन लोहे महफूज से आसमां ने दुनिया पर नाजिल की गई फिर 23 साल में वक्त और जरूरत के लिहाज से थोड़ा-थोड़ा करके आसमाने दुनिया से रसूल ए पाक सल्लल्लाहु वाले वसल्लम पर नाजिल की गई। क़ुरआने करीम की बरकत से इस रात को हजार महीनों से अफजल करार दिया गया जैसा कि क़ुरआने करीम में इरशाद रब्बानी है, ‘‘इनना अंजलना हूं फी लैईलतुल कद्र, व मा अदराका मा लैईलतुल कद्र, लैईलतुल कदरी खेइरूम मिन अल्फी शहर’’
कुरान-ए-करीम से निस्बत रखने वाली हर चीज अल्लाह तबारक व तआला ने अज व शर्फ अता फरमाया। चुनांचे हाफिज-ए-कुरान, आलिम-ए-कुरआन, हामिल-ए-कुरआन, कारी-ए-कुरआन हत्ता कि नाजिर-ए-कुरआन यानी कुरआन-ए-हकीम को मोहब्बत से देखने वालों को भी अल्लाह महबूब रखता है और उनसे खुश होता है।
इस माह में कुरान-ए-करीम की तिलावत और समाअत के लिए तरावीह जैसी अहम इबादत अता की गई। यह महीना इंसानी गमख्वारी, बाहिमी हमदर्दी, मुरव्वत और इंसानी रवादारी का महीना है। जहां इस मौके पर मोमिन का रिस्क बढ़ा दिया जाता है, वही इसके रिजक में दूसरों का हिस्सा मुकर्रर करके और उसक दूसरों के दुख-दर्द में शरीक करके सआदत उखरवी हासिल करने का बहाना भी फराहम कर दिया जाता है। यह दुनिया के ठुकराए हुए मायूस और बद दिल और बैचेन व बेकरार इंसानों के लिए प्याम-ए-रहमत बलकि बाबे रहमत है। यह महीना इबादतों का मौसम-ए-बहार और तकुरूबे खुदा वंदी हासिल करने के लिए जश्ने बहारा की हैसियत रखता है। इस महीने में फर्ज व बाजिब इबादत के अलावा नवाफिल व मुस्तहाबबात की तौफीक बढ़ा दी जाती है और इसके जाइद अर्ज-व-सवाब का लालच हर शख्स को इस बात पर आमादा करता है कि वह अपने दामन-ए-मुराद को ज्यादा से ज्यादा भर सके और खालिक व मालिक से अपना ताल्लुक इस्तवार करके अपनी किस्मत चमका सके।
आमाल-ए-खेर किसी एक दायरे में महदूद नहीं बलके भूखों को खाना खिलाना, अहले हाजत की हाजत पूरी करना, रोजेदारों को इफ्तार कराना, सदका-खेरात वगैरा, तिलावत-ओ-इबादत, जिक्रो-शक्ल और वाजो-इरशाद उनमें से हर काम इस मौके पर बड़ा मुबारक है। लेकिन इन सब की असल जड़ इखलास है, अगर इन तमाम इबादतों में इख्लास नहीं तो यह सारी चीजें बेजान और बे हकीकत है। इनकी अल्लाह तआला के मिजाने अदल में कोई वजन और कीमत नहीं। यह चंद दिन जो देखने में बहुत थोड़े मालूम होते हैं हमारे पूरे साल बलकि बाज पूरी उम्र पर भारी हो सकते हैं। इस महीने की आखिरी रात में अल्लाह तबारक व तआला उमते मोहम्मदिया सल्ला वाले वसल्लम के रोजेदारों के लिए मगफिरत का ऐलान फरमाते हैं। अपने बंदों पर खुसूसियत से मुतवज्जह होते हैं, गुनाहों को माफ करते और दुआ को कबूल फरमाते हैं। हर शब व रोज में मुसलमान की एक दुआ कबूल होती है। इस महीने की हर रात में अल्लाह तआला की तरफ से एक पुकारने वाला पुकारता है, कि है कोई मांगने वाला कि मैं उसको दूं। है कोई तौबा करने वाला कि मैं उसको माफ करूं। है कोई मगफिरत चाहने वाला कि मैं उसको बख्श दूं। माहे मुबारक की यह मुकद्दस सआदतेे एक बार फिर हमारे सामने हैं और हम इनके इस्तकबाल के लिये सरापा शोक ओ इंतजार बने हुए हैं। अल्लाह की तरफ से यह अबरे करम एक बार फिर बरसने के लिए तैयार है और रहमतो मगफिरत के तालीबेन और अजाब से छुटकारा चाहने वालों की मुरादें पूरी करने के लिए बेकरार है। ऐसे में हमारी जरूरत और अक्ल का तकाजा यह है कि हम इसके एक-एक लम्हे को गनीमत समझे दुनिया की लायानी मशागिल से अपना वक्त फारिग करके ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादतों-रियाजत और जिक्रो-अजकार और तौबा-इस्तिगफार, दुआओं-मुनाजात और तिलावते कुरआन में सर्फ करे। इस वक्त फराईज पर शिद्दत से काईम रहे और एक-एक सुन्नत, ओर एक-एक नफिल-ओ-मुस्तहाबबात की पाबंदी करे ओर अल्लाह तआला के हुकूक के साथ हुकूक उल इबाद का पुरा ख्याल रखे। ओर हर नेक काम को अपनाने की सई करे। अगर साहिबे निसाब हैं तो हिसाब लगाकर जकात अदा करें। मुसलमानों के हाजात और जरूरीयात की फिक्र और उनकी परेशानियों में शरीक-ए-गम हो जाए। किसी से तकलीफ पहुंचे तो सब्र करें और खुद किसी को तकलीफ ना पहुंचाएं। गाली-गलौज बल्कि फुजूलियात से इजतिनाब करे। झूठ हरगिज़ ना बोलें और किसी की गिबत ना करें। जिस कदर हो सके जरूरतमंदों की माली मदद करें। अपने खुद्दाम और मातहतों के काम और जिम्मेदारियों में तख्फीफ और आसानी पैदा करें। निहायत आजीजी और तवाजों से दुआओं का अहतमाम करे। रोजा के ममनुआत और मुनकरातो फवाहिश से मुकम्मल तौर पर इजतनाब करें। और कोशिश करे की रमजान की यह मुकद्दस सआदतें हमारी बद आमालियों के सबब जाय न चली जाए। गीबत ओर बोहतान तराशी, ऐब जोई, झूट ओर वादा खिलाफी जैसी बातों से अपने को दूर रखे। ओर इस का ख्याल रखे की हमारी थोड़ी सी गफलत कही हमे रमजान के अजरे अजीम से महरूम न कर दे। इस मुबारक महीने को अल्लाह की मर्जी के मुताबिक गुजारने के लिये पहले से निजामुल ओकात तय कर ले, ताकि सारे काम अपने-अपने वक्त पर मुकम्मल करके अल्लाह की इबादत इख्लास के साथ कर सके।
यह महीना अल्लाह के यहां को कुबूलियत का महीना है लिहाजा दुआ का वक्त जरूर मुतय्यन करें और यह सारी इबादते इस तरह अंजाम दें कि इन से किसी को तकलीफ ना पहुंचे और नाजायज तरीकों की बदौलत इन इबादतों का सवाब ज़ाए न हो। मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिर्फ बवक्त जरूरत और बकदरे जरूरत करें। बिरादराने वतन का खास ख्याल रखें और आपके किसी भी अमल से उनको तकलीफ ना पहुंचे। वरना खुदा न खासता यह रहमत का महीना आपके लिए जहमत का महीना ना बन जाए। इस महीने में अल्लाह की तरफ से बेहद बेहद हिसाब कर्म उसका फजल उसकी रहमतों और नवाजीशों की मूसलाधार बारिश हमे सराबोर करने वाली है ।
लिहाजा हमें चाहिए कि हम मै से जिस किसी के भाई, बहन, वालीदैन, अजीजओ अकारिब जो गुजिश्ता सालों में इस नेमत में हमारे साथ शरीक थे, मगर अब वह इन आमाल की तौफीक से महरूम होकर दुनिया से रुखसत हो चुके हैं। इस मुबारक मौके पर उनका भी हक है कि हम अपने उन मरहूमीन को याद रखें और उनके लिए दुआएं खेर और आमाले सालिहा का एहतमाम करके उनके साथ अपने ताल्लुक का हक अदा करें। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे सभी मुसलमान भाई इस मुबारक माह में हम सब को अपनी मुख्लीसाना दुआओं में याद रखेंगे। अल्लाह तआला हम सबको सही इस्लाम पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए।

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