कांग्रेस : लचर चुनाव प्रबंधन डुबो सकता है लुटिया

कांग्रेस : लचर चुनाव प्रबंधन डुबो सकता है लुटिया

देहरादून। उत्तराखण्ड में चुनाव दर चुनाव हार का सामना कर रही कांग्रेस ही हालत सुधरने का नाम नही ले रही है। कमजोर संगठन और लचर चुनावी प्रबंधन के चलते कांग्रेस जीत का स्वाद चखने से दूर होती जा रही है। हर चुनावी दौर में पार्टी मजबूत होने की बजाए, कमजोर होती हुई दिखाई दे रही है। ऐसा ही कुछ हाल निकाय चुनाव 2025 में भी दिखाई दे रहा है। बागियों के ताल ठोकने, खेवनहारों के पार्टी छोड़ने और चुनावी कुप्रबंधन के चलते सभी निकायों में कांग्रेस की हालत नाजुक दिखाई दे रही है।

उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव का शोर अंतिम दौर में है, मगर कांग्रेस के न तो स्टार प्रचारकों का अता-पता है और न ही धरातल पर चुनावी प्रबंधन कही नज़र आ रहा है। आलम यह है कि चुनावी प्रबंधन को पार्टी के प्रत्याशियों को प्राईवेट एजेंसियों का सहारा लेना पड़ रहा है। देहरादून नगर निगम में ही 38 बागी कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों के लिये सर दर्द बने हुए हैं।

नगर निगम देहरादून में 2018 में भाजपा ने तीसरी बार परचम लहराया था। तब कांग्रेस के प्रत्यशी पूर्व कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल को करारी हार का सामना करना पड़ा था, उनको नये नवेले प्रत्याशी सुनील उनियाल गामा के हाथों 35 हजार से अधिक अंतर से शिकस्त खानी पड़ी थी, अब दिनेश अग्रवाल भी भाजपा के पाले में हैं, यही नही पिछली बार विजय हुए 34 में से 6 पार्षद भी भाजपाई हो चुके हैं।

कांग्रेस ने इस बार छात्र राजनीति से निकले विरेंद्र पोखरियाल पर दावं खेला है, पोखरियाल राज्य आंदोलनकारी भी है, उनकी छवी भी साफ-सुधरी है, मगर पहली बार चुनावी समर में उतरे है। अपनी टीम के सहारे ही लक्ष्य की और बढ़ रहे हैं, मंजिल आसान नही है। पोखरियाल के मुकाबले दिनेश अग्रवाल अनुभवी नेता है, वह 2002, 2007 व 2012 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे।

बहुगुणा और हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उनपर 2018 के नगर निगम चुनाव में दावं खेला था, मगर वह भाजपा के सुनील उनियाल गामा से हार गये, कांग्रेस ने फिर भी उनका सम्मान रखते हुए उन्हे 2022 में धर्मपुर से चुनाव मैदान में उतारा, मगर अग्रवाल इस बार भी भाजपा के विनोद चमोली को पछाड़ने में नाकाम रहे, मगर 2024 का लोकसभा चुनाव आती ही दिनेश अग्रवाल ने पाला बदल लिया और कांग्रेस को त्याग कर भाजपा की गोद में चले गये।  इन हालातों में कांग्रेस के लिये पिछला नगर निगम का इतिहास भी दौहराना बड़ी चुनौती दिखाई दे रही है।  

देहरादून नगर निगम में शहर की पंाच विधानसभा सीटे आती है, इन पांचों विधानसभाओं में भाजपा का दबदबा कायम है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने यहा कांग्रेस को बड़े अंतर से मात दी थी, जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला, कांग्रेस पांचों सीटों पर पिछड़ी थी।

देहरादून नगर निगम में 100 वार्ड शामिल है, कांग्रेस सभी वार्डों में चुनाव लड़ रही है, मगर 100 में से 38 वार्डों में कांग्रेस के बागी पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अगर पिछले नगर निगम चुनाव पर नज़र डाली जाए तो कांग्रेस 100 में से मात्र 34 वार्डों में ही जीत हासिल कर सकी थी। भाजपा ने 60 वार्डों में जीत का परचम लहरा कर बोर्ड पर अपना कब्जा जमाया था, वही 6 वार्डों में निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी।

2018 में कांग्रेस के टिकट पर जीत कर आए 34 में से 6 पार्षदों ने लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व कैबिनेट मंत्री व मेयर प्रत्याशी रहे दिनेश अग्रवाल के साथ कांग्रेस को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थाम लिया था। अगर विधानसभा वार बात की जाए तो, किसी भी विधानसभा में कांग्रेस बढ़त में नही है। लोकसभा और विधानसभा में कांग्रेस देहरादून वासियों का सर्मथन जुटाने में असफल रही है। धर्मपुर विधानसभा में कुल 22 हैं, जिनमें से कांग्रेस पिछली बार 12 वार्ड ही जीत सकी थी।

राजपुर विधानसीाा के 18 में से 7 वार्डें में ही कांग्रेस को विजय प्राप्त हुई थी। मसूरी विधानसभा के 12 में से 5 वार्डों में ही कांग्रेस अपने प्रत्याशी जिता सकी थी। कैंट विधानसभा में 15 में से मात्र वार्डों में 3 ही कांग्रेस प्रत्याशी विजय हासिल कर सके थे। यही हाल रायपुर विधानसभा में भी देखने को मिला था, यहा 24 में से 6 वार्डों में ही कांग्रस को जीत हासिल हुई थी। इन सब आंकड़ों पर नजऋर डाली जाए तो 2025 के नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस की राह आसान नही दिखाई दे रही है।

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