यहां ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम का रुख़ कर रहे लोग

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प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट को अगर सही माना जाए तो पूरी दुनिया में इस्लाम सबसे तेजी से फैलने वाला धर्म है, जितनी तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है उसके हिसाब से 2070 तक इस्लाम धर्म को मानने वालों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक होगी। प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2060 तक पूरी दुनिया में मुसलमानों की कुल आबादी 2015 के मुकाबले 70 फीसदी बढ़ जाएगी।

भारत के पड़ोस में हिंद महासागर में स्थित मालदीव में 100 फीसदी आबादी मुसलमान है, इसी तरह मॉरिटानिया एक अफ्रीकी मुस्लिम देश है, जहां 100 फीसद मुस्लिम आबादी रहती है। ट्यूनीशिया की कुल आबादी में 99.8 प्रतिशत मुस्लिम हैं। सोमालिया की भी 99 फीसदी जनसंख्या मुस्लिम धर्म का पालन करती है। अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों में भी 99 प्रतिशत लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं, अगर सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले देशों की बात की जाए तो इंडोनेशिया पहले नंबर पर है, उसके बाद पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश का नंबर आता है।

इंडोनेशिया के बाद दूसरे नंबर पर पाकिस्तान आता है, यहां मुस्लिमों की संख्या 23 करोड़ के पार है। पिछली जनगणना के अनुसार पाकिस्तान की कुल आबादी 18,68,90,601 थी, जिनमें से 18 करोड़ 25 लाख 92 हजार मुस्लिम हैं, पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या करीब 22,10,000 है और 74 हजार से अधिक सिख हैं। इसके बाद ईसाई लगभग 18 लाख 73 हजार, अहमदी 1,88,340, और पारसी करीब 4000 हैं।

तीसरे नंबर पर भारत है, यहां भी मुस्लिमों की जनसंख्या करीब 20 करोड़ से ज्यादा है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक तब भारत में 17.22 करोड़ मुस्लिम थे, जो देश की कुल आबादी का 14.2 फीसदी था। चौथे नंबर पर बांग्लादेश आता है, यहां मुस्लिम आबादी 15 करोड़ से ज्यादा है। पांचवें नंबर पर अफ्रीकी देश नाइजीरिया आता है, यहां 11 करोड़ से ज्यादा इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं, इसके बाद मिस्र (11 करोड़), इराक और तुर्की आते हैं। इराक और तुर्की में लगभग 9-9 करोड़ मुस्लिम आबादी है, वहीं, सउदी अरबिया की कुल आबादी 3 करोड़, 72 लाख है। अगर 1971 में बांग्लादेश खुद को पाकिस्तान से अलग कर खुद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित नहीं करता तो पाकिस्तान मुस्लिम आबादी के मामले में पहले नंबर पर होता।

यह तो वह आंकड़े है जो प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट से समाने आए हैं, वहीं, ‘बीबीसी हिन्दी’ के मुताबिक इथियोपिया एक ऐसा देश है, जहा बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के लोग अपना धर्म त्याग कर इस्लाम की शरण में आ रहें है।

आईये जाने है, इथियोपिया के बारे में। इथियोपिया अफ़्रीका का दूसरी सबसे बड़ी आबादीवाला आधुनिक देश है, वहा के प्रधानमंत्री को 2019 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, मगर उसके एक साल बाद ही इथियोपिया में गृहयुद्ध छिड़ गया, इसमें हज़ारों आम लोग मारे गए थे, इथियोपियाई समाज में ऑर्थाेडॉक्स ईसाई चर्च की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गृह युद्ध की वजह से इथियोपियाई ऑर्थाेडॉक्स चर्च के भीतर भी मतभेद पैदा हो गए, एक समय था जब इस देश के 44 प्रतिशत लोग अपने आपको ऑर्थाेडॉक्स ईसाई बताते थे, इथियोपियाई समाज और राजनीति में ऑर्थाेडॉक्स चर्च के प्रभाव को कभी चुनौती नहीं मिली थी, मगर अब धीरे-धीरे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो दूसरे पंथों में शामिल हो रहे हैं।

ख़ुद को ऑर्थाेडॉक्स ईसाई बताने वालों की संख्या तेज़ी से घट रही है। इथियोपिया का ऑर्थाेडॉक्स तेवाहेडो ईसाई चर्च दुनिया की सबसे पुरानी ईसाई शाखाओं में से एक है, तेवाहेडो का अर्थ है ‘एकता’। इथियोपिया में यह धारणा रही है कि उनके शासक, उन राजा सोलोमन और राजा मैकाडा के वंशज हैं जिनका बाइबल में ज़िक्र आता है।

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के एक वरिष्ठ शोधकर्ता मेब्राटू केलेचा का मानना है कि सदियों से ऑर्थाेडॉक्स तेवाहेडो चर्च का इथियोपिया पर गहरा प्रभाव रहा है। वह देश की पहचान का महत्वपूर्ण अंग है। ऑर्थाेडॉक्स चर्च में मतभेद तो पहले से थे लेकिन टिगरे में नवंबर 2020 में गृहयुद्ध की शुरुआत के बाद वो और गहरे हो गए, वहीं ओरोमिया क्षेत्र में विद्रोह भी इसका एक कारण था। ओरोमिया क्षेत्र में चर्च के प्रशासनिक ढांचें को लेकर आलोचना होती रही है, लोगों का यह कहना है चर्च वहां के अनुयाइयों से संवाद के लिए मातृभाषा के प्रयोग को अपनाने में विफल रहा है।

चर्च में गैइज़ भाषा का इस्तेमाल होता है, जो एक प्राचीन भाषा है, इसका संबंध अम्हारिक भाषा से है, जो इथियोपिया के पुराने उच्च वर्ग की भाषा रही है, मगर 1974 में इथियोपिया के राजा हायले सलासी को सत्ता से हटाए जाने के बाद वह उच्च वर्ग हाशिये पर आ गया, उस कार्रवाई में हज़ारों लोग मारे गए थे, इसमें इथियोपिया नरेश और चर्च के पेट्रीआर्क यानि चर्च प्रमुख की भी हत्या हो गई थी, उसके बाद आबूना मेरकोरियस को चर्च का नया प्रमुख चुना गया।

मेब्राटू केलेचा के अनुसार चर्च पर आरोप है कि 1974 में राजा सलासी को हटाए जाने के बाद से बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार वो ख़ुद को ढालने में असफल रहा है, इथियोपिया में सैनिक शासन आ गया था और राजनितिक स्थित बदल गई थी। कई सालों की अस्थिरता के बाद 1991 में इथियोपिया में नई सरकार आई, इस बार इथियोपियाई ओर्थाेडॉक्स चर्च के प्रमुख विदेश चले गए और निर्वासन में इथियोपियाई ओर्थाेडॉक्स चर्च की स्थापना की।

वहीं इथियोपिया में आबूना पाउलस ओर्थाेडॉक्स चर्च के पेट्रिआर्क बने और 2018 तक चर्च का कार्यभार संभालते रहे, मगर 2018 में आबी अहमद प्रधानमंत्री बने और उन्होंने आबूना मेरकोरियस को वापस देश में बुला लिया, आबूना मेरकोरियस और वर्तमान चर्च प्रमुख यानि पेट्रिआर्क आबूना मथायस के बीच समझौता तो हो गया, लेकिन इन दोनों को साथ रखना आसान नहीं था। मेब्राटू केलेचा कहते हैं, ‘‘प्रधानमंत्री ने चर्च के भीतर विभाजन के ज़ख़्म भरने के लिए निष्कासन में रह रहे धार्मिक नेताओं को देश में वापस तो बुला लिया था, लेकिन इससे चर्च पर नियंत्रण के लिए दोनों में प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई’’।

प्रधानमंत्री बनने के बाद आबी ने देश के सत्ता के ढांचे में बदलाव के लिए कदम उठाए, इस वजह से उनके सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद गृहयुद्ध छिड़ गया। नवंबर 2020 में टिगरे क्षेत्र ने ख़ुद को केंद्रीय सरकार से अलग कर लिया, इसका सीधा असर इथियोपिया के ऑर्थाेडॉक्स चर्च की एकता पर पड़ा। इस युद्ध का पहला सबसे बड़ा हमला अक्सुम शहर पर हुआ जो इथियोपिया के ऑर्थाेडॉक्स चर्च का केंद्र माना जाता है।

इथियोपियाई लोगों का मानना है कि इस शहर के चर्च ऑफ मैरी-अवर लेडी ऑफ़ जायोन में, ईसाइयों और यहूदियों के लिए पवित्र माने जाने वाले आर्क ओफ़ कोवैनंट को हज़ार सालों से अधिक समय से सुरक्षित रखा गया है, हमले के दौरान इस चर्च को निशाना बनाया गया और ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस चर्च में शरण लेने वाले सैकड़ों लोगों को बाहर निकाल कर गोलियां मार दी गईं और चर्चों को लूटा गया। 7 मई 2021 को टिगरे के चार आर्च बिशपों ने मिल कर एक स्वतंत्र ढांचा बनाने की घोषणा कर दी, उन्होंने चर्च पर युद्ध का विरोध नहीं करने और आबी सरकार से नज़दीकियां रखने के आरोप लगाए।

मेब्राटू केलेचा ने कहा, अफ़्रीकन यूनियन की मध्यस्थता से इथियोपिया सरकार और टिगरे लिबरेशन फ़्रंट के बीच प्रेटोरिया में हुए युद्ध विराम समझौते से हिंसा तो थम गई है, मगर अभी भी देश के कई विवादित मुद्दों और टिगरे के भविष्य संबंधित विवादों को सुलझाया जाना बाकी है। मुझे लगता है कि इथियोपिया की ऑर्थाेडॉक्स चर्च के बीच विभाजन का असर भी देश की अस्थिरता पर पड़ा है।

यूके के ऑक्सफ़र्ड सेंटर फ़ॉर मिशन स्टडीज़ के असोसिएट प्रोफ़ेसर राल्फ़ ली कहते हैं कि इथियोपिया में ऑर्थाेडॉक्स चर्च की स्थापना चौथी शताब्दी के मध्य में हुई थी, यानि यूरोप का ईसाईकरण होने से भी पहले। तब से लेकर 1974 की कम्यूनिस्ट क्रांति के समय तक वह लगातार देश का आधिकारिक धर्म बना रहा, मगर ऑर्थाेडॉक्स चर्च इथियोपिया का मुख्य चर्च या ईसाई धर्म की मुख्य शाखा कैसे बना?

राल्फ़ ली ने कहा, वह इथियोपिया का मुख्य चर्च इसलिए बना क्योंकि वहां सबसे पहले उसकी स्थापना हुई थी, उससे पहले इथियोपिया में कौन से धर्म थे इसके बारे में हमें बहुत कम जानकारी है। इस्लाम के उदय से पहले ही वहां उसकी जड़ें मज़बूत हो चुकी थीं, वहां मुसलमान थे मगर ऑर्थाेडॉक्स चर्च काफ़ी प्रभावशाली था। यानि इथियोपिया का शुमार दुनिया के कुछ पहले ईसाई देशों में होता है।

इस्लाम के इतिहास को देखें तो इथियोपिया में इस्लाम का प्रसार भी उसके इतिहास के शुरुआती सालों में हुआ था, इथियोपिया का दूसरा नाम एबीसीनिया है और क़ुरान में पैगंबर मोहम्मद ने प्रताड़ित मुसलमानों को सलाह दी थी कि वो एबीसीनिया में शरण लें क्योंकि वहां वो सुरक्षित रह सकते हैं। इथियोपिया में जूडाइज़म का प्रसार भी हुआ लेकिन इथियोपिया को परिभाषित किया ईसाई ऑर्थाेडॉक्स चर्च ने।

राल्फ़ ली के अनुसार पिछले सत्रह सौ वर्षों में इथियोपिया के समाज, राजनीति और संस्कृति को गढ़ने में ईसाई ऑर्थाेडॉक्स चर्च की मुख्य भूमिका रही है, देश का मुख्य धर्म होने की वजह से उसका बड़ा प्रभाव था। राल्फ़ ली कहते हैं, “तेरहवीं शताब्दी से लेकर 1970 के दशक में इथियोपिया के राजा हाइले सेलासी तक देश के सभी राजा अपने आपको राजा सोलोमन और रानी शीबा के वंशज मानते रहे हैं, यह धारणा भी है कि रानी शीबा का जन्म इथियोपिया में हुआ था और रानी शीबा और राजा सोलोमन के पुत्र आर्क ऑफ़ दी कोवेनंट को इथियोपिया लाए थे।

ईसाई और यहूदियों की धारणा है कि ‘आर्क ऑफ़ दी कोवेनंट’, लकड़ी और सोने से बना बक्सा है जिसमें वो तख़्ती है जिस पर ईसाई धर्म के दस मौलिक सिद्धांत लिखे गए हैं, यह धार्मिक चिन्ह इसाइयों और यहूदियों के लिए पवित्र माना जाता है, मगर जहां तक बाइबल में इथियोपिया के ज़िक्र की बात है, राल्फ़ ली कहते हैं कि इसे लेकर कुछ संदेह भी हैं।

ग्रीक भाषा में लिखे गए ओल्ड टेस्टामेंट में इथियोपिया शब्द विशिष्ट भौगोलिक देश को बयान नहीं करता बल्कि यह संकेत देता है कि वह मिस्र के दक्षिण में कोई जगह है, मगर यह इथियोपिया की पहचान का एक महत्वपूर्ण अंग ज़रूर है। इथियोपिया में ऑर्थाेडॉक्स इसाइयों के अलावा दूसरे धर्म के लोग भी कई सदियों से रहते रहे हैं-ख़ास तौर पर वहां मुसलमानों की आबादी भी काफ़ी बड़ी है, हालांकि वहां मुसलमानों का शासन कभी नहीं रहा है।

अमेरिका स्थित अकादमिक और उत्तर पूर्वी अफ़्रीका के विशेषज्ञ योहानस वोल्डेमरियम का मानना है कि बाइबल में जिस इथियोपिया का ज़िक्र होता है उसका आधुनिक इथियोपिया से बहुत कम संबंध है। तीन हज़ार सालों के जिस निरंतर संबंध की बात की जाती है दरअसल वह एक मिथक है, इथियोपिया के राजाओं ने इस मिथक का इस्तेमाल पश्चिमी देशों के साथ संबंध मज़बूत करने के लिए किया।

1974 में अंतिम राजा हाईले सलासी को सत्ता से हटा कर उनकी हत्या कर दी गई, इस प्रकार सलासी राजवंश का दौर समाप्त हो गया, उसके बाद एक मार्क्सवादी सरकार सत्ता में आई, जिसे डर्ग कहा जाता था, उसने ना तो धर्म को प्रोत्साहित किया और ना दबाया।

1991 में डर्ग को सत्ता से बाहर कर दिया गया, कई जातीय गुटों का गठबंधन इथियोपियन पीपल्स रेवोल्यूशनरी डेमोक्रैटिक फ़्रंट या ईपीआरडीएफ सत्ता में आ गया, इसके बाद बदलाव का नया सिलसिला शुरू हुआ, उसने ऐसे जातीय गुटों का सशक्तीकरण किया जो हमेशा हाशिए पर रहे थे।
आबी अहमद को एरिट्रिया के साथ सीमा विवाद से जुड़े युद्ध को समाप्त करके शांति समझौता करने के लिए 2019 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, देश में राजनीतिक नियंत्रण हटाने के लिए भी उनकी प्रशंसा हुई, उनसे बहुत उम्मीदें थीं।

ओरोमो समुदाय के आबी अहमद के पिता मुस्लिम थे और मां ईसाई थीं, मगर वह ख़ुद मुसलमान नहीं हैं। ओरोमा समुदाय की लंबे अरसे से अवहेलना होती रही है, आबी ना तो प्रभावशाली ओम्हारा या तिगरेयाई जातीय समुदाय से हैं और ना ही ओर्थाेडॉक्स ईसाई हैं, ऐसे में उनका नेतृत्व संभालना इथियोपियाई समाज में एक बड़ी बात थी।

योहानस वोल्डेमरियम कहते हैं, इथियोपिया के लिए यह मुश्किल समय है, मेरे हिसाब से तो इथियोपिया टूटता जा रहा है। ईपीआरडीएफ़ के खिलाफ़ नाराज़गी और विरोध प्रदर्शनों के चलते 2018 में आबी प्रधानमंत्री बने, ओरोमिया के लोग इथियोपिया में बहुसंख्यक हैं मगर वर्षों से हाशिए पर रहे हैं, उन्होंने ओम्हारा क्षेत्र के लोगों के साथ गठबंधन कर लिया।

इन्हीं स्थितियों की वजह से 2020 में लड़ाई शुरू हो गई थी लेकिन केंद्र सरकार और टिगरे प्रतिरक्षा बल के बीच प्रेटोरिया में हुए समझौते के बाद 2022 में लड़ाई थम गई, मगर यह केवल एक राजनीतिक समझौता था, इसलिए इससे चर्च के बीच दरारें कम नहीं हुईं, मगर चर्च के सामने इसके अलावा भी कई चुनौतियां हैं।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में वर्ल्ड क्रिश्चियानिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर योर्ग हाउस्टाइन की राय है कि इथियोपिया में पिछले बीस तीस सालों में लोगों के धार्मिक रुझान में परिवर्तन आया है। इथियोपिया हमेशा ही ईसाई और मुस्लिम देश रहा है. लेकिन ईसाई धर्म के भीतर ही कई लोग ऑर्थाेडोक्स ईसाई धर्म से हट कर ईसाई धर्म की प्रोटेस्टंट शाखा कि ओर मुड़ रहे हैं जिसकी एक वजह है-पेंटेकोस्टलर का करिश्माती आंदोलन और उसकी बढ़ती लोकप्रियता।

कुछ अनुमानों के अनुसार अब इथियोपिया में ऑर्थाेडोक्स ईसाइयों की आबादी कुल आबादी के पचास प्रतिशत से भी कम हो गई है, इथियोपिया की लगभग साठ प्रतिशत आबादी 25 साल से कम उम्र के लोगों की है। क्या इन युवाओं का इथियोपिया की उस छवि से मोहभंग हो चुका है जिसका संबंध बाइबल से है और जिसने संगीत के लोकप्रिय रास्ताफेरीयन कलाकार बॉब मार्ले के संगीत और रास्ताफ़ेरियन आंदोलन को प्रेरित किया था।

योर्ग हाउस्टाइन कहते हैं,वो मिथक काफ़ी पहले समाप्त हो चुका था और 1974 की क्रांति के बाद पूरी तरह मिट गया। शहरीकरण जैसे कई कारणों की वजह से इथियोपिया का युवा आधुनिक विचारधारा की ओर बढ़ रहा है, उसका रुझान प्रोटेस्टंट पेंटेकोस्टेलिज़म की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि पेंटेकोस्टेलिज़म व्यक्तिगत विकास और आर्थिक सुधार पर बल देता है।

मगर यह भी याद रखना चाहिए कि इथियोपिया में इस्लाम एक सबसे तेज़ी से बढ़ता धर्म बन चुका है। देश की एक तिहाई आबादी अपने आप को मुसलमान मानती है। आबी एहमद विकास और शांति की नयी आशा लेकर सत्ता में आए थे लेकिन जल्द ही वह धूमिल होने लगी, उनके सामने एक चुनौती यह है कि इथियोपिया एक विशाल और पेचीदा देश है वहीं उसके सोमालिया, सूडान, साउथ सूडान और एरिट्रिया जैसे पड़ोसियों के साथ संबंध भी आसान नहीं हैं।

योर्ग हाउस्टाइन कहते हैं कि इथियोपिया में केंद्र और क्षेत्रीय सरकारों के बीच संघर्ष का लंबा इतिहास है, एक बहुधर्मी, बहुजातीय और बहुभाषी देश में संसाधनों का समान वितरण हमेशा चुनौतिपूर्ण होता है, लेकिन इथियोपिया की विविधता को सही दिशा में ले जाना, सभी जातीय और सांस्कृतिक गुटों में शांति और एकता बनाए रखना देश के सामने एक बड़ी चुनौती है।

तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर-क्या इथियोपियाई लोगों की उनके ऑर्थाेडॉक्स ईसाई चर्च में आस्था घट रही है? इस चर्च की जड़ें इथियोपिया के इतिहास में गहराई तक गई हैं, अगर आप वहां जाएं तो पत्थरों को काट कर बनाए गए ख़ूबसूरत गिरजाघरों की महीन नक्काशियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे, इनमें से कई गिरजाघर यूरोप के गिरजाघरों से अधिक पुराने हैं, लोग कहते हैं वहां एक हज़ार से भी अधिक सालों से ‘आर्क ऑफ़ दी कोवेनंट’ को सुरक्षित रखा गया है।

सैकड़ों सालों से लाखों लोगों की ऑर्थाेडॉक्स चर्च में आस्था रही है, अब उनकी संख्या घट रही है क्योंकि कई लोग ईसाई धर्म की दूसरी शाखाओं और इस्लाम का रुख कर रहे हैं, मगर चर्च की घंटियां, अज़ान और पेंटेकोस्टलर प्रार्थना की आवाज़ आपको इथियोपिया में हर जगह सुनाई देती है। लोग मानते हैं कि धर्म में आस्था, उन्हें ख़ुद को बेहतर तरीके से समझने और जीने में मदद करती है, मगर अब कई लोग यह नहीं मानते की ऑर्थाेडॉक्स तेवाहेडो चर्च ही इसका एकमात्र ज़रिया है।

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