विश्व मधुमक्खी दिवस पर विषेश : शुभ विश्व मधुमक्खी दिवस

विश्व मधुमक्खी दिवस पर विषेश : शुभ विश्व मधुमक्खी दिवस
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विश्व मधुमक्खी दिवस (world bee day) 20 मई, 1734 को एंटोन जन्सा के जन्मदिन का प्रतीक है। एंटोन आधुनिक मधुमक्खी पालन के पहले शिक्षक माने जाते हैं। उन्होंने 1774 में एक पुस्तक डिस्कशन ऑन बी-कीपिंग प्रकाशित की थी। मधुमक्खियों पर खतरा मंडरा रहा है। मानवजनित प्रभावों के कारण वर्तमान प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है।

लगभग 35 प्रतिशत अकशेरुकी परागणकों, विशेष रूप से मधुमक्खियों और तितलियों, और लगभग 17 प्रतिशत कशेरुकी परागणकों, जैसे चमगादड़, विश्व स्तर पर विलुप्त होने का सामना कर रहे हैं। यदि यही हाल रहा, तो फल, नट और कई सब्जियों की फसलों जैसे पौष्टिक फसलों को चावल, मक्का और आलू जैसी प्रमुख फसलों द्वारा तेजी से प्रतिस्थापित किया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप अंततः असंतुलित आहार होगा।

गहन कृषि पद्धतियां, भूमि उपयोग परिवर्तन, एकल फसल, कीटनाशक और जलवायु परिवर्तन से जुड़े उच्च तापमान मधुमक्खी आबादी के लिए सभी समस्याएं पैदा करते हैं, इनके विस्तार से  हमारे द्वारा उगाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।

मधुमक्खियों द्वारा परागणकर्ताओं के रूप में निभाई जाने वाली भूमिकाओं पर विशेष जोर दिया जाता है, साथ ही उनके वन आवरण को बढ़ाने की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया जाता है। मधुमक्खियों और अन्य परागणकों, जैसे कि तितलियों, चमगादड़ों और हमिंगबर्ड्स पर मानवीय गतिविधियों के कारण खतरा बढ़ रहा है।

हालांकि, परागण हमारे पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व के लिए एक मूलभूत प्रक्रिया है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की लगभग 90 फीसदी जंगली फूलों वाली पौधों की प्रजातियां, पूरी तरह से, या आंशिक रूप से जीवों के परागण पर निर्भर करती हैं।
विश्व की 75 प्रतिशत से अधिक खाद्य फसलें और 35 प्रतिशत कृषि भूमि इनके भरोसे हैं। परागकण न केवल सीधे खाद्य सुरक्षा में योगदान करते हैं, बल्कि वे जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

मधुमक्खियों और अन्य परागणकों की रक्षा के लिए उपायों को मजबूत करना है, जो दुनिया भर की खाद्य आपूर्ति से संबंधित समस्याओं को हल करने और विकासशील देशों में भूख को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। हम सभी परागणकों पर निर्भर हैं और इसलिए, उनकी गिरावट की निगरानी करना और जैव विविधता की क्षति को रोकना हमारे अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। साक्ष्य-आधारित कृषि उत्पादन प्रथाओं के माध्यम से मधुमक्खियों और अन्य परागणकों की रक्षा के महत्व पर प्रकाश डालता है।

मधुमक्खियाँ कई पौधों और जंतुओं के अस्तित्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये विश्व की लगभग एक-तिहाई फसलों और 90 प्रतिशत वन्य पुष्पीय पौधों को परागित करती हैं। ये शहद, मोम, प्रोपोलिस और अन्य मूल्यवान उत्पादों का भी उत्पादन करती हैं जिनके पोषणीय, औषधीय और आर्थिक लाभ हैं।

मधुमक्खियाँ पौधों को तेज़ी से एवं स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद करती हैं, जिससे उनके कार्बन ग्रहण और भंडारण क्षमता में वृद्धि होती है। मधुमक्खियाँ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की आवश्यकता को भी कम करती हैं, जो कि वातावरण में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की संकेतक भी हैं, क्योंकि ये पर्यावरणीय परिवर्तनों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, आवास हानि तथा कीटनाशकों के प्रति प्रतिक्रिया देती हैं।

ये विभिन्न फसलों जैसे फलों, सब्जियों, तिलहन, दालों आदि में परागण के द्वारा इनकी उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होती हैं। एक अनुमान के अनुसार मधुमक्खी परागण से फसल की पैदावार औसतन 20-30 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, जो किसानों की आय में वृद्धि करेगी।

मधुमक्खी पालन शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पाद जैसे मोम, प्रोपोलिस आदि का उत्पादन करके ग्रामीण परिवारों के लिये आय और रोज़गार के अवसर सृजित करने में सहायक है। शहद एक उच्च मूल्य वाला उत्पाद है जिसकी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अत्यधिक मांग है। यह उपभोक्ताओं के लिये पोषण तथा स्वास्थ्य का स्रोत भी है। यह महिलाओं और युवाओं को मधुमक्खी पालन गतिविधियों में उद्यमियों या स्वयं सहायता समूहों के रूप में शामिल करके उनके सशक्तीकरण में भी मदद कर सकता है।

शहरीकरण, कृषि और वनों की कटाई के कारण प्राकृतिक आवासों का नुकसान और विखंडन। सघन और मोनोकल्चर खेती के तरीके जो फूलों की विविधता को कम करते हैं और मधुमक्खियों को कीटनाशकों और शाकनाशियों के संपर्क में लाते हैं। रोग, कीट और आक्रामक प्रजातियाँ जो मधुमक्खी के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करती हैं। जलवायु परिवर्तन जो फूलों के मौसम, वितरण और पौधों की उपलब्धता को बदल देता है। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच मधुमक्खी पालन के लिये जागरूकता, ज्ञान और समर्थन की कमी।

भारत विश्व में 1.2 लाख मीट्रिक टन के अनुमानित वार्षिक उत्पादन के साथ शहद के सबसे बड़े उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है। भारत में मधुमक्खी पालन की एक समृद्ध परंपरा और संस्कृति है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है।

वर्तमान में, लगभग 12,699 मधुमक्खी पालक और 19.34 लाख मधुमक्खियों की कॉलोनियाँ राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं और भारत लगभग 1,33,200 मीट्रिक टन शहद (वर्ष 2021-22 अनुमान) का उत्पादन कर रहा है। नवंबर 2022 में 200 से अधिक वर्षों के अंतराल के बाद पश्चिमी घाटों में भारतीय काली मधुमक्खी (एपिस करिंजोडियन) नामक स्थानिक मधुमक्खी की एक नई प्रजाति की खोज की गई।

भारत विश्व के प्रमुख शहद निर्यातक देशों में से एक है और उसने वर्ष 2021-22 के दौरान 74,413 मीट्रिक टन शहद का निर्यात किया है। भारत में शहद उत्पादन का 50 प्रतिशत से अधिक अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है। भारत लगभग 83 देशों को शहद निर्यात करता है। भारतीय शहद के प्रमुख बाज़ार अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, कनाडा आदि हैं।

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक वर्ष 2021-22 में शीर्ष दस शहद उत्पादक राज्य थे।

बड़े पैमाने पर मीडिया अभियान, प्रदर्शनों, क्षेत्र का दौरा आदि के माध्यम से मधुमक्खी पालन के लाभों के बारे में किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता है। साथ ही प्रोत्साहन, पुरस्कार आदि के माध्यम से किसानों को मधुमक्खी पालन को अपनी फसल प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी, सहकारी समितियों आदि के माध्यम से इनपुट्स आपूर्ति शृंखला जैसे-मधुमक्खी कालोनियों, छत्तों आदि को मज़बूत करने की आवश्यकता है। मानकीकरण और प्रमाणीकरण तंत्र जैसे ठप्ै मानक आदि के माध्यम से इनपुट का गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना। सब्सिडी या वाउचर आदि के माध्यम से किसानों को वहन करने योग्य इनपुट प्रदान करना।

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण आदि जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से शहद या अन्य मधुमक्खी उत्पादों के लिये बाज़ार जुड़ाव को मज़बूत करने की आवश्यकता है। साथ ही प्रसंस्करण इकाइयों जैसे हनी पार्क आदि के माध्यम से शहद या अन्य मधुमक्खी उत्पादों के मूल्यवर्द्धन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।

मधुमक्खियाँ दुनिया की 70 प्रतिशत फसलों के परागण के लिए जिम्मेदार हैं, जिसका अर्थ है कि उनके बिना, हमारी खाद्य आपूर्ति गंभीर संकट में होगी। मधुमक्खियाँ इंसानों के चेहरों को पहचान सकती हैं और नृत्य के माध्यम से एक दूसरे के साथ संवाद करने का एक अनोखा तरीका अपना सकती हैं। मधुमक्खियों का एक छत्ता एक पाउंड शहद बनाने के लिए पर्याप्त रस इकट्ठा करने के लिए 55,000 मील तक उड़ सकता है। मधुमक्खियाँ तेज़ गति से उड़ने में सक्षम हैं, और उनके पंख प्रति सेकंड लगभग 200 बार फड़फड़ाते हैं।

मधुमक्खियों की लगभग 250 ज्ञात प्रजातियां हैं। मधुमक्खियाँ फूलों की खोज में अपने छत्ते से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी तक चली जाती हैं। फूलों की खोज के लिए वे सूरज की स्थिति के अनुसार अपना रास्ता खोजती हैं। अपना खाना खोजने के दौरान मधुमक्खियां 21 से 28 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती हैं। गर्मियों के मौसम में मधुमक्खियों के छत्ते में 35 हजार से 40 हजार मधुमक्खियां तक मौजूद रहती हैं, लेकिन ठंड के दिनों में यह संख्या घटकर पांच हजार के करीब रह जाती है। शहद के अलावा मधुमक्खियां बी वैक्स (मोम), बी ब्रेड और रॉयल जेली का भी उत्पादन करती हैं।

फसलों में ज्यादा केमिकल का इस्तेमाल करने से मधुमक्खियों को गंभीर खतरा है। जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण मधुमक्खियों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है। क्लाइमेट चेंज के कारण मौसम में बदलाव मधुमक्खियों के जीवन और प्रोडक्शन को प्रभावित कर रहा है। रोगों और कीटों का प्रकोप भी मधुमक्खियों की संख्या को कम कर रहा है।

फसलों में केमिकल का कम इस्तेमाल करें और ऑर्गेनिक खेती को अपनाएं। अपने घरों, बगीचों और खेतों में मधुमक्खियों के लिए फूलों वाले पौधे लगाएं। अपने गमलों में ऐसे पुष्पों को अधिक लगायें जो मधुमक्खी को आकर्षित करतें हों। लोकल हनी का उपयोग करें और बीकीपर्स के काम को बढ़ावा और समर्थन दें।

मधुमक्खियों के महत्व और उनसे जुड़े खतरों के बारे में जागरूकता फैलाएं। अपनी दिनचर्या में प्रातःकाल नींबू पानी मे शहद मिलाकर पियें, ताकि चेहरे पर कांति आये और पाचन ठीक रहे। अपने भोजन में शहद सम्मिलित करें और स्वस्थ रहें।

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