रमजान के चांद का हुआ दिदार, बरकतों का माह शुरू
अल्लाह से नजदीकी हासिल करने का मौका है रमजानः काजी
मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कम से कम करने का आह्वान
देहरादून। मुकद्दस माह रमजान के चांद का दिदार होते ही बरकतों-रहमतों ओर खुदा से नजदीकी दिलाने वाला रमजान माह शुरू हो गया है। रमजान माह का चांद नजर आते ही तरावीह की विषेश नमाज व रोजे शुरू हो गये। शनिवार को देहरादून के शहर काजी मौलाना मौहम्मद अहमद कासमी व जमीयत के जिला अध्यक्ष मुफ्ति रईस अहमद कासमी ने चांद देखे जाने का ऐलान किया।
जमीयत उलेमा उत्तराखंड (म) के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना आरिफ कासमी, जमीयत उलेमा उत्तराखंड (अ) के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना हुसैन ने भी चांद की तस्दीक करते हुए कहा कि पवित्र रमजान माह का अहतराम करे पाबंदी के साथ रोजे रखे, नमाज व तरावीह अदा करें। जमीयत के प्रदेश महासचिव मौलाना शराफत, दारुल काजा के काजी मुफ्तिी सलीम अहमद कासमी ने भी आह्वान किया है कि सभी हजरात तरावीह व दिगर नमाज अदा करने का अहतमाम करते हुए जकात फितरा और सदका अधिक से अधिक करें। वही इमाम संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुफ्तिी रईस अहमद कासमी ने तमाम मस्जिदों के इमामों से आह्वान किया है कि मस्जिदों में उपयोग होने वाले माइक (लाउडस्पीकर) का कम से कम उपयोग करे। खास कर सेहरी के समय एहतीयात रखी जाए।
रमजान अहम इनायतों में से एक इनायत
देहरादून। रमजान मुसलमानों के लिए अल्लाह का एक इनाम और उसकी अहम इनायतों में से एक इनायत है। यह महीना अल्लाह से नजदीकी और उसकी रजा हासिल करने का मौका व अपनी जिंदगी में इंकलाब बरपा करने का एक बहाना है। इस मौके पर थोड़ी सी मेहनत और अल्लाह से ताल्लुक किसी के भी मुस्तकबिल की जिंदगी को संवार सकता है और जिंदगी कि इन तमाम खुशियों को मुहैया करा सकता है जिनकी इंसान मुद्दतों तमन्ना करता है। इस माह में इबादत का अजरो-सवाब बढ़ा दिया जाता है और इबादत की तौफीक देकर अल्लाह तआला की बेहिसाब अता व बख्शिश मुतवज्जह रहती है। इस महीने में अल्लाह की तरफ से उसका फजल, उसकी रहमतों और नवाजीशों की मूसलाधार बारिश हमे सराबोर करने वाली है। इस माह में कुरान-ए-करीम की तिलावत और समाअत के लिए तरावीह जैसी अहम इबादत अता की गई। यह महीना इंसानी गमख्वारी, बाहिमी हमदर्दी, मुरव्वत और इंसानी रवादारी का महीना है। जहां इस मौके पर मोमिन का रिस्क बढ़ा दिया जाता है, वही इसके रिजक में दूसरों का हिस्सा मुकर्रर करके और उसक दूसरों के दुख-दर्द में शरीक करके सआदत उखरवी हासिल करने का बहाना भी फराहम कर दिया जाता है।