पैगंबर साहब ने महिलाओं को इज्जत से जीने, जायदाद और तालीम का हक दिया

आखिरी हज के खुतबे में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐलान किया कि सारे इंसान एक मां-बाप की औलाद हैं।

पैगंबर साहब ने महिलाओं को इज्जत से जीने, जायदाद और तालीम का हक दिया
…और हमनें आपके लिए आपके ज़िक्र को बुलंद कर दिया (सूरह शरह)


अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) लोगों को सख्त दुश्मनी के माहौल में इस्लाम का पैगाम पहुंचा रहे थे। और हालात ये थे कि मक्का के सरदार हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मुबारक जान लेने तक का इरादा कर चुके थे। उस वक्त कोई ये सोच भी नहीं सकता था कि जिन नबी (सल्ल.) के साथ दुश्मनी का ऐसा रवैया बरता जा रहा हो और साथ में बस गिनती के चंद आदमी हों, उनका नाम किस तरह बुलंद होगा। लेकिन अल्लाह ने उन हालात में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को ये खुशखबरी सुनाई और फिर उसको पूरा किया। और ऐसा पूरा किया कि आज देखें, दुनिया का कोई कोना और दिन का कोई वक्त ऐसा नहीं होता जहां हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का नाम ना लिया जाता हो। आप (सल्ल.) की सुन्नतों को अदा करने के लिए उभारा जाता है। अज़ानों में आपके रसूल होने की गवाहियां दी जाती हैं, दुरूद भेजे जाते हैं, आप (सल्ल.) की शान में नातिया कलाम पढ़े जाते हैं। आप (सल्ल.) के हुलिया-ए-मुबारक से लेकर आप (सल्ल.) की हंसी खुशी, आप (सल्ल.) के मुबारक फैसले, आप (सल्ल.) की मुबारक जंगे, आप (सल्ल.) की मुबारक सवारी, आप (सल्ल.) का मुबारक खान-पान, आप (सल्ल.) के रोज मर्रा के एक-एक मुबारक हालात किताबों में हिफाज़त के साथ दर्ज हैं। उस वक्त जब हालात इतने मायूसी पैदा करने वाले थे, किसी के ख्याल में भी नहीं था कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का नाम इस तरह बुलंद होगा ये हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नाम की बुलंदी, दरअसल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और कुरान के बिल्कुल सच्चा होने का खुला सबूत है।
‘‘ऐ नबी, हमने जो आपको भेजा है तो ये असल में दुनियावालों के हक़ में हमारी रहमत है’’(सूरह अंबिया)। अल्लाह पाक ने तमाम मखलूक(प्राणी) के जिंदा रहने का इंतज़ाम करने के साथ उनकी रुहानी रहनुमाई के लिए नबियों का सिलसिला शुरू किया। जो हज़रत आदम (अ.) से शुरू होकर आखरी नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर मुकम्मल हुआ। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) कियामत तक के लिए रसूल बना कर भेजे गए हैं और पूरी इंसानियत के लिए रहमत हैं।

  1. आखिरी हज के खुतबे में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐलान किया कि सारे इंसान एक मां-बाप की औलाद हैं। रंग, नस्ल, ज़बान, और इलाक़ा बड़ाई की बुनियाद नहीं हैं जिन पर आज का समाज बना हुआ हैं बल्कि बड़ाई की असल बुनियाद तकवा (अल्लाह का डर) है। इंसानी जिंदगी को अल्लाह के हुक्म के मुताबिक चलाया कि कोई गिरोह किसी दूसरे गिरोह पर जुल्म न करें। अल्लाह की दी गयी हिदायात के ज़रिये से इंसानी तहज़ीब और तालीम को तरक़्क़ी की राह पर लगाया। 2. इंसाफ की एक मिसाल ये है कि जब हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से चोरी के एक मामले में मखजूमिया खानदान की फातिमा नामी औरत के बारे में सिफारिश की गई तो आप (सल्ल.) ने फरमाया कि अगर फातिमा मखजूमिया के बजाय मुहम्मद (सल्ल.) की बेटी फातिमा (रज़ी) भी होतीं तो उनका भी हाथ काटा जाता। तुमसे पहले की क़ौमें इस वजह से बर्बाद हुई कि छोटों को सजा देते थे और बड़ों को माफ कर देते थे। क्या इंसाफ के ऐसे पैमाने की मिसाल आज इस 21वीं सदी की तरक्की पसंद दुनिया में मिल सकती है?। 3. जो ‘‘अरब’’ देश के लोग कल तक ऐसे थे कि बड़ी-बड़ी ताकतें उन पर राज तक करना पसंद नहीं करते थे, सिर्फ आसमानी हिदायत पर अमल करने की वजह से चंद ही सालों में दुनिया के इमाम बन गए। पूरी दुनिया को तौहीद का सबक पढ़ाया। साइन्स, मेडिकल साइन्स, मैथ्स, ज्योग्राफी, तारीख (हिस्ट्री) समेत हर तरह इल्म में तरक्की के नए दरवाजें खोले। दुनिया की हर जबान के फ़रोग में हिस्सा लिया। शेर-ओ-अदब की सेहतमंद रिवायत कायम की। 4. क़ुरान पर गौर-ओ फिक्र करने और उस पर अमल करने के नतीजे में अल्लाह ने मुसलमानों को अपनी जमीन की खिलाफत अता फरमायी। हर तरह की बुराई, कुफ़, शिर्क, सूद बयाज़, चोरी, डाका ज़नी वगैरह के खिलाफ एक नमूना कायम किया। पैदाइश, बचपन, जवानी, बुढ़ापा, शादी, मौत हर मौके के लिए हिदायात बयान फरमायी और इन मौकों को सादे से सादा बनाने का हुक्म दिया।
  2. हजरत मुहम्मद (सल्ल.) जब इस दुनिया में तशरीफ लाये, उस वक़्त पूरी दुनिया में औरतों की हैसियत दयनीय थी। कई जगह औरत को शैतान का रूप और तमाम बुराई व मुसीबत की जड़ समझा जाता था। पैदा होते ही जिंदा गाड़ देने का रिवाज तो आम था। औरत को विरासत तक में कोई हिस्सा नहीं मिलता था। हुजूर सल्ल. ने उन्हें इज्जत के साथ जीने, जायदाद और तालीम का हक दिया। लड़कियों को पाल-पोस कर बड़ा करने पर और लड़कों से कम ना समझने पर जनत जाने की खुशखबरी दी। इंसानी रिश्तों में बराबरी के झूठे नारों और फरेबी वादों के बजाये हर किसी के लिए इंसाफ का पैमाना क़ायम किया। 6. हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने अल्लाह तआला के बताए हुए उसूलों के तहत इस्लामी समाज की तामीर की। पड़ोसियों और रिश्तेदारों के हुकूक को बरत कर दिखाया। गरीब की देखभाल इस्लामी हुकूमत की जिम्मेदारी थी। उसके कर्ज की अदा करने की जिम्मेदारी सरकारी खजाने के ज़िम्मे थी। कारोबारी मामलात में मजदूर, मालिक, नौकर हर एक लिए हद बताई गई। कारोबार, व्यापार वगैरह के नियम की पाबंदी के लिए आप (सल्ल.) ने खास ताकीद फरमाई। 7. गरीब, बेरोज़गारों व तमाम निचले तबकों पर जुल्म की सबसे बड़ी वजह सूद को हराम करके फायदा और नुकसान की बुनियाद पर तिजारत को बढ़ाया गया, जिसकी वजह से दौलत कुछ हाथों में जमा होने के बजाय पूरे समाज में घूमती रही। 8. जंग और सुलाह के नियम बनाए गए। समाज में कुछ किरदार ऐसे होते हैं जो खुद हक कबूल नहीं करते और साथ ही समाज को भी हक अपनाने से रोकते हैं। कुरान का बयान है कि ये तबका अकसर समाज का दौलतमंद और ताकतवर हिस्सा होता है। उनके असर से समाज का आम तबका भी हक नही कबूल कर पाता जिससे समाज में बुराई को बढ़ावा मिलता है और नेकी नही पनप पाती।
  3. बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए ऐसे किरदारों का खात्मा जरूरी है जिसके लिए हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने आगे बढ़ कर वक्त के शैतानों से जंग की। उनकी अपनी जिंदगी में छोटी बड़ी कुल 95 जंगे हुई जबकि 27 में उन्होंने खुद हिस्सा लिया। जंग के दौरान आला अखलाक की मिसाल पेश की। दोनों तरफ का जानी नुकसान सिर्फ 1018 था। जख्मी भी बहुत कम थे। 9. इंतकाल के वक्त हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की कुल दौलत थोड़े से जौ और कुछ जमीन थी जबकि उस वक्त आप (सल्ल.) अरब के बहुत बड़े हिस्से पर हकूमत कर रहे थे और शांति का हाल यह था कि इस बड़ी हुकूमत में एक औरत अकेले एक किनारे से दूसरे किनारे तक सफर कर सकती थी।

  4. आप सल्ल. ने जिंदगी के हर रोल को निभाने के लिए इंसानियत की रहनुमाई फरमाई है। ऐसी अजीम शख्सियत तो हमारी अपनी जानों से भी ज्यादा हम पर हक रखती है। इंसानियत पर एहसान करने वाली ऐसी हस्ती का हम पर क्या हक है? हमें चाहिए कि हम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर ईमान लाए। जो कुछ भी शरीअत के खिलाफ हो, उसे रद कर दें। जो लोग अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के तरीके पर अमल नहीं करते, उनको बार-बार बेहतरीन तरीके से समझाए। अपनी जान से भी ज्यादा प्यारे नबी (सल्ल.) से मुहब्बत करें और उनकी शरीअत पर अमल करने की एक दूसरे को नसीहत करते रहे और शरीयत पर अमल करने के नतीजे में जो मुसीबत भी झेलनी पड़े, उसका डट कर सामना करें। और सख्त से सख्त आज़माइश में भी अपने असल मकसद को कभी न भूलें। ताकि हमारा शुमार भी उन लोगों में से हो जाए जो हौजे कौसर पर साकी कौसर (सल्ल.) के मुबारक हाथों से जामे कौसर हासिल करें। सालारे कारवां है मीरे हिजाज़ (सल्ल.) अपना इस नाम से बाकी है आरामे जां हमारा।

मुफ्ती रईस अहमद कासमी
अध्यक्ष
जमीअत उलेमा उत्तराखंड, जिला देहरादून।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here